सच-सच बता दोस्त

Posted by हारिल On Thursday, August 25, 2011 0 comments
निराला


भ्रष्टाचार क्या सच में सबसे बड़ा मसला है

यह भेदता और बेधता है कभी अंदर तक

रात की नींद उड़ायी है कभी इसने

कभी ले लिया है दिन और दिल का चैन

वैसे ही जैसे कभी सवर्ण बिटिया का किसी दलित के बेटू से

या सवर्ण के बेटे का दलित बिटिया से शादी कर लेने के बाद

मचता है कोहराम

होता है वज्रपात

टूट पड़ता है आसमान

सिर्फ मां-बाप, भाई-बहन ही नहीं

फुआ, मौसी, नानी, काकी, मामी...

सब नाक-मुंह फुला लेते हैं

एक झटके में जनम और खून का रिश्ता तोड़ने लगते हैं

सबसे छुपाते रहते हैं या कहते फिरते हैं

नाश कर दिया, कहीं का नहीं छोड़ा करमजला-करमजली

सच-सच बता जिस तरह जाति का मसला रगों में लहू की तरह दौड़ता है

मन में कुंडली मारे बैठा रहता है

और बात-बेबात असली चेहरा सामने ला देता है

वैसा ही कभी भ्रष्टाचार के मसले पर खौलता है खून

भ्रष्टाचार के मसले पर तोड़ते देखा है किसी को रिश्ता

ऐसा करने को सोचते हुए भी किसी के बारे में सोचा है कभी

कुछ नजीर है कि अपने ही भाई, बंधु, फुफा, मौसा, मामा से तोड़ दिया रिश्ता फलां ने

यह कहते हुए कि वे भ्रष्टाचारी हैं

ऐसा करने का साहस जुटाते हुए किसी भींड़ को देखना तो जरूर बताना

सच में भ्रष्टाचार तब डर जाएगा, भाग जाएगा वह

देखना, तब किसी अन्ना-अरूणा-लोकपाल की जरूरत नहीं पड़ेगी!

तू ही बता, क्या आसमान से टपका हुआ कोई शैतान भ्रष्टाचार करता है

तेरे-मेरे अपने ही तो करते हैं न

तो आओ एक बार उनसे रिश्ता तोड़ने की कसम लें

बंद करें उनसे किसी भी किस्म का संवाद

यह कहते हुए कि भ्रष्टाचारी हो आप, क्या बात करें आपसे...

आपने मेरी नींद, चैन सब उड़ा रखी है

सच में दोस्त, देखना उस रोज भ्रष्टाचार की हालत

खत्म हो जाएगा वह, मरने लगेगा अपनी मौत

क्या हम ऐसा एक बार भी करके देखें दोस्त

कई मुखौटों को उतारने की कोशिश करें

या फिर ऐसे ही रामनामी माला जपते रहें कि

एक-दो-तीन-चार

दूर करो ये भ्रष्टाचार...

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