मृत्यु / अनामिका

Posted by हारिल On Sunday, January 6, 2013 0 comments
उसकी उमर ही क्या है !
मेरे ही सामने की 
उसकी पैदाइश है ! 
पीछे लगी रहती है मेरे 
कि टूअर-टापर वह 
मुहल्ले के रिश्ते से मेरी बहन है !

चौके में रहती हूँ तो 
सामने मार कर आलथी-पालथी
आटे की लोई से चिड़िया बनाती है !
आग की लपट जैसी उसकी जटाएँ 
मुझ से सुलझती नहीं लेकिन 
पेशानी पर उसकी
इधर-उधर बिखरी 
दीखती हैं कितनी सुंदर !

एक बूंद चम-चम पसीने की 
गुलियाती है धीरे-धीरे पर 
टपके- इसके पहले 
झट पोंछ लेती है उसको वह 
आस्तीन से अपने ढोल-ढकर कुरते के !
कम से कम पच्चीस बार 

इसी तरह 
हमको बचाने की कोशिश करती है। 
हमारे टपकने के पहले !
कभी कभी वह 
लगा देती है झाड़ू घरों में! 
जिनके कोई नहीं होता-
उन कातर वृद्धाओं की 
कर देती है जम कर खूब तेल-मालिश।
दिन-दिन भर उनसे बतियाती है जो सो ! 

जब किसी को ओठ गोल किए 
कुछ बोलते देखें गडमड-
समझ लें- वह खड़ी है वहीं
या ऊंघ रही है वहीं खटिया के नीचे-
छोटा-सा पिल्ला गोद में लिये !
बडे़ रोब से घूमती है वह 
इस पूरे कायनात में। 
लोग अनदेखा कर देते हैं उसको 
पर उससे क्या?
वह तो है लोगों की परछाईं ! 
और इस बात से किसको होगा भला इनकार 
आप लांघ सकते हैं सातों समुंदर 
बस अपनी परछाईं नहीं लांघ सकते ।

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