आहत व नेक लोगों के नाम एक खत

Posted by हारिल On Friday, April 24, 2015 0 comments
जानता हूं, यह ठीक समय नहीं है कि आप लोगों से कोई कड़वी बात की जाए. लेकिन, फिर भी यही मौका है कि मुझ जैसा खाकसार आपसे कुछ कह सके. आप हद दरजे के शरीफ होने के बाद भी देश, समाज, धर्म आदि के नाम पर बेहद आक्रामक लोग हैं. असहमति को आप हवा में उछाला गया कोई ऐसा पदार्थ मानते हैं जिसे बाद में आपकी सहमति वाली जमीन पर ही गिरना है. चूंकि इस समय आप नेक लोग, बेहद सदमे में हैं इसलिए मैं इस मौके का फायदा उठाना चाहता हूं. सबसे पहले तो मैं आप लोगों को बधाई देना चाहता हूं कि आपने तेजपाल के जुर्म की क्या खूब सजा दी....

बुधवार, 09/01/2013

Posted by हारिल On Tuesday, January 8, 2013 0 comments
कभी कभी लगता है तारीखों का कोई महत्व नहीं होता, अगर उसे दर्ज़ न किया जाय। सोचता हूँ हर तारीख को दर्ज़ करूँ, डायरी लिखूँ । क्या मैं शुरुआत कर चुका हूँ शायद! एक सामान्य से बुधवार को खास बनाने का प्रयास। डायरी लिखने पर लिखने के बारे में सोचते हुए मन में बार बार पुराने परिचित का ध्यान आ रहा है उस ने अभी अभी आर चेतन क्रांति की ताज़ा कविता पर सवाल उठाते हुए कहा की क्या यह साहित्य है, बड़ी कोफ्त होती है  वह लड़का कॉलेज के दिनों में कविता करना चाहता था आज कल क्या कर रहा है पता नहीं ... क्या लेखन...

मृत्यु / अनामिका

Posted by हारिल On Sunday, January 6, 2013 0 comments
उसकी उमर ही क्या है !मेरे ही सामने की उसकी पैदाइश है ! पीछे लगी रहती है मेरे कि टूअर-टापर वह मुहल्ले के रिश्ते से मेरी बहन है !चौके में रहती हूँ तो सामने मार कर आलथी-पालथीआटे की लोई से चिड़िया बनाती है !आग की लपट जैसी उसकी जटाएँ मुझ से सुलझती नहीं लेकिन पेशानी पर उसकीइधर-उधर बिखरी दीखती हैं कितनी सुंदर !एक बूंद चम-चम पसीने की गुलियाती है धीरे-धीरे पर टपके- इसके पहले झट पोंछ लेती है उसको वह आस्तीन से अपने ढोल-ढकर...

सच-सच बता दोस्त

Posted by हारिल On Thursday, August 25, 2011 0 comments
निराला भ्रष्टाचार क्या सच में सबसे बड़ा मसला हैयह भेदता और बेधता है कभी अंदर तकरात की नींद उड़ायी है कभी इसनेकभी ले लिया है दिन और दिल का चैन वैसे ही जैसे कभी सवर्ण बिटिया का किसी दलित के बेटू सेया सवर्ण के बेटे का दलित बिटिया से शादी कर लेने के बादमचता है कोहरामहोता है वज्रपातटूट पड़ता है आसमानसिर्फ मां-बाप, भाई-बहन ही नहींफुआ, मौसी, नानी, काकी, मामी...सब नाक-मुंह फुला लेते हैंएक झटके में जनम और खून का रिश्ता तोड़ने लगते हैंसबसे छुपाते रहते हैं या कहते फिरते हैंनाश कर दिया, कहीं का नहीं छोड़ा...

cant we study present situation like this ?

Posted by हारिल On Thursday, August 18, 2011 0 comments
From EPW Vol XLVI No.26 June 25, 2011 Fasts, Hunger and Hunger Strikes By: Anand Teltumbde How the State has responded to the fasts of Anna Hazare, Baba Ramdev and Medha Patkar and how the media has portrayed them are a study in contrasts and say something about our society. Anand Teltumbde (tanandraj@gmail.com) is a writer and civil rights activist with the Committee for the Protection of Democratic Rights, Mumbai. Once a government is committed to the principle of silencing the voice...

एनिवन कैन बी अ फेमिनिस्ट !

Posted by हारिल On Monday, March 7, 2011 0 comments
“फ्रांस की जो स्थिति 1949 में थी, पश्चिमी समाज उन दिनों जिस आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा था, वह शायद हमारा आज का भारतीय समाज है, उसका मध्यम वर्ग है, नगरों और महानगरों में बिखरी हुई स्त्रियाँ हैं, जो संक्रमन के दौर से गुज़र रहीं हैं”।(डॉ. प्रभा खेतान, स्त्री उपेक्षिता) आठ मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्कूलों में जिस तरह से लेख लिखना सिखाया जाता है यदि उस भाषा में लिखूँ तो इस दिन महिलाओं के उत्थान, उनकी...

गोधरा पर फैसला

Posted by हारिल On Friday, March 4, 2011 0 comments
1 मार्च को विशेष अदालत ने गोधरा कांड में दोषी करार दिये गए 31 आरोपियों को सज़ा सुना दी। 31 में से 11 को फांसी और 20 को उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई है। यह खबर पूरे देश को अखबारों और खबरिया चैनलों के माध्यम से पता चल चुकी है। फैसला एक विशेष अदालत ने दिया है इस लिए इस पर कोई ज़्यादा टिप्पणी नहीं कर सकता। लेकिन फिर भी 9 साल पुराने इस मामले के कुछ बिन्दुओं पर ध्यान देना ज़रूरी है वह भी तब जब ज़्यादातर अखबारों में यह खबर की भाषा कुछ ऐसी हो “वर्ष 2002 में...