कविताएँ

Posted by हारिल On Tuesday, March 30, 2010 6 comments
(1)लो लिख मारीमैंने एक और कविता हाँ,तुम्हारे ऊपर ....तुम जो वर्ग की श्रेणी में मध्यम आते होतुम न शोषक हो न शोषित ...फिर भी पता नहीं क्यों डरते हो थोड़े से अक्षरों से......उनकी अर्थवान एकता से ....खैर, जबकि तुमपहचान लिए गए होमेज के उस तरफ बैठे आदमी के एजेंट के रूप मेंतो तुमसे क्या कहूँ ...तब जबकितुम में से किसी ने अपने बच्चे के सवाल को डांट कर चुप करा दिया है .......कोई अपनी बीबी को अपने साहब के पास बेच आया है......कोई बहुत तत्परता से हमारी रिपोर्ट वहां दर्ज करा रहा है .....फिर भी अगर संभावना हो...

मीडिया का मोदी महोत्सव

Posted by हारिल On Tuesday, March 30, 2010 1 comments
नरेन्द्र मोदी से रविवार 29 मार्च को दो बैठकों में 9 घंटे पूछताछ हुई. उनसे मैराथन बातचित कर यह पता लगाने का प्रयास किया गया होगा कि 2002 के दंगों, खास तौर से उस घटना, जिसमें गुलबर्ग सोसायटी में रहने वाले सांसद सहित 62 लोगों को जिंदा जला दिया गया था , में सरकार की क्या भूमिका रही थी . आरोप है कि अगर सरकार और मुख्यमंत्री चाहते तो ऐसा होने से रोका जा सकता था. इस मामले में दायर याचिका में कहा गया है कि 'बार-बार फ़ोन करने पर भी पुलिस अधिकारीयों द्वारा ध्यान नहीं दिया गया. स्वयं मुख्यमंत्री नरेन्द्र...

फ़िर से ..........

Posted by हारिल On Wednesday, November 11, 2009 1 comments
27 दिसम्बर 2008 के बाद आज फ़िर से इसी ब्लॉग पर एक नई पोस्ट .....ऐसा अकसर होता है कि आप ने सोच लिया हो की आप कोई काम नही करेंगे लेकिन फ़िर आप करते हैं .....क्या यहीं पर आदमी कमज़ोर होता है ..या फ़िर व्यक्ति वहां कमज़ोर होता है जब वह किसी खास चीज़ से दुरी बनाने की सोच लेता है ....खैर जो भी हो ...इस लगभग 1 साल (300 दिन ) में काफी परिवर्तन हुए ...अव्वल तो मुझे बी.कॉम की डिग्री मिल गई ...दूसरा मैं जनसंचार का छात्र हो गया महात्मा गाँधी अन्तराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय में जिसके कारण जमशेदपुर छुटा और अब...

हजारीबाग--फाइल बंद

Posted by हारिल On Saturday, December 27, 2008 6 comments
मैंने फैसला किया था कि हजारीबाग की घटना के बारे में सारी बातें बताऊंगा, लेकिन पहले मैं समझ लूँ की वहां आखिर हुआ किया? और इस प्रयास इतने दिन लग गये...... खैर अब मैं कुछ-कुछ समझ पाया हूँ की वहां जो कुछ भी हुआ हो या जो कुछ भी हुआ वह साहित्यिक तो बिलकुल नहीं था समाजिक भी नहीं था, और घटना को फिर से दुहरना उसे दुबारा पुनर्जीवित करना एक संतोष जनक बेबकूफी से ज्यादा और कुछ भी नहीं होगा। हाँ गोष्टी से कुछ बातें और सवाल जो उठ कर आये उनपर अगर विचार किया जाय तो कुछ बात बन सकती है. मसलन "वर्तमान समय में एक...

"हजारीबाग-1__नामवर का आना जाना

Posted by हारिल On Sunday, December 21, 2008 8 comments
अभी कुछ देर पहले हजारीबाग से लौटा हूँ। परसों शाम के वक़्त खबर मिली की 'नामवर सिंह' वहां आने वाले हैं, प्रगतिशील लेखक संघ के द्वितीय राज्य स्तरीय सम्मलेन में. वैसे मैं खुद किसी संघ से जुडा हुआ नहीं हूँ लेकिन किसी न किसी कारण से प्रगतिशील लेखक संघ के कार्यक्रमों में श्रोता के रूप में पिछले 3 वर्षों से शामिल होता रहा हूँ, ओछी राजनीति को इसका हिस्सा मानते हुए भी कुछ अच्छा सुन लेने के लालच मुझे वहां खीच ले जाती है क्यों की शहर मैं कोई और संघ या गुट साहित्यिक माहौल का निर्माण करता नज़र आता, बहरहाल मैं...

नए ब्लॉग का जस्टिफिकेशन!!!!

Posted by हारिल On Monday, December 15, 2008 1 comments
आज फ़िर अपने एक नए ब्लॉग पर पहला पोस्ट । जहाँ तक मुझे याद है यह मेरा छटा ब्लॉग है, जिन छह में से तीन पर तो कभी कोई पोस्ट डाली ही नही गई, एक ब्लॉग जो मेरे द्वारा चलाया जाता है लेकिन वो मेरा निजी नही है. एक, जिसपर मैं पिछले तीन महीने से आपना स्थाई ब्लॉग होने का दंभ भर रहा था तथा जिस पर हर हफ्ते एक पोस्ट डालने की कोशिश करता था एवं जिसमें पिछले दो महीने से असफल रहा था ।मुझे यह बात बहुत परेशान कर रही है कि आख़िर ऐसा क्या है जो मुझे हर बार एक नया ब्लॉग बनने को विवश करता है , लेकिन मुझे पता है कि जो लोग...