बुधवार, 09/01/2013

Posted by हारिल On Tuesday, January 8, 2013 0 comments
कभी कभी लगता है तारीखों का कोई महत्व नहीं होता, अगर उसे दर्ज़ न किया जाय। सोचता हूँ हर तारीख को दर्ज़ करूँ, डायरी लिखूँ । क्या मैं शुरुआत कर चुका हूँ शायद! एक सामान्य से बुधवार को खास बनाने का प्रयास। डायरी लिखने पर लिखने के बारे में सोचते हुए मन में बार बार पुराने परिचित का ध्यान आ रहा है उस ने अभी अभी आर चेतन क्रांति की ताज़ा कविता पर सवाल उठाते हुए कहा की क्या यह साहित्य है, बड़ी कोफ्त होती है  वह लड़का कॉलेज के दिनों में कविता करना चाहता था आज कल क्या कर रहा है पता नहीं ... क्या लेखन...

मृत्यु / अनामिका

Posted by हारिल On Sunday, January 6, 2013 0 comments
उसकी उमर ही क्या है !मेरे ही सामने की उसकी पैदाइश है ! पीछे लगी रहती है मेरे कि टूअर-टापर वह मुहल्ले के रिश्ते से मेरी बहन है !चौके में रहती हूँ तो सामने मार कर आलथी-पालथीआटे की लोई से चिड़िया बनाती है !आग की लपट जैसी उसकी जटाएँ मुझ से सुलझती नहीं लेकिन पेशानी पर उसकीइधर-उधर बिखरी दीखती हैं कितनी सुंदर !एक बूंद चम-चम पसीने की गुलियाती है धीरे-धीरे पर टपके- इसके पहले झट पोंछ लेती है उसको वह आस्तीन से अपने ढोल-ढकर...