गुंजेश
(1)
जो खिड़की दीवार में रहती थी, और जिस दीवार में रहती थी, वह और ही मिट्टी की बनी हुई थी, दीवार में जिस जगह मिट्टी नहीं थी वहाँ खिड़की रहती थी। खिड़की में मिट्टी नहीं हवा रहती थी। हवा हमेशा टिक कर, मिट्टी की तरह, नहीं रहती थी॥ एक गुजरती थी तो दूसरी आती थी। आगे वाली हवा पीछे वाली हवा को खिड़की का पता बताते जाते थी। जैसे हवा, हवा नहीं चीटी हो। जब कोई हवा खिड़की पर बैठ कर सुस्ताने लगती, तो कमरे (चारों दीवारों, जिनमें से किसी...
गुंजेश
1
तुम जवाब मत दो
मैं सवाल भी नहीं करूंगा
मेरा और तुम्हारा रिश्ता
बादल और धूप का हो
लोग, एक की उपस्थिती में
दूसरे को चाहें
2
अरसा हो गया
तुमसे मिले हुए
अब तो तुम्हें याद भी नहीं होगा कि
आखरी दिन मैंने शेव किया था या नहीं
आखरी दिन तुमने कौन से रंग का सूट पहना था
अब कुछ ठीक से याद नहीं पड़ता
वैसे भी, कितने तो रंग पहन लेती थी एक साथ
इसलिए याद नहीं अब कोई भी एक
तुम मेजेंटा कहो, पर्पल कहो
मुझे तो सब आसमानी लगते...
कई बार, कई कहानियों को पढ़ते हुए इस (कु) पाठक के मन में यह प्रश्न उठता रहा है
कि जिस तरह से हर कथा में कई उपकथाएँ होतीं हैं क्या उसी तरह से कई उपकथाओं को जोड़
देने से कोई (सार्थक; अगर लेखक का उसपर यकीन हो तो) कहानी बन
सकती है? यह प्रश्न एक बार फिर मेरे सामने आया जब मैं
मिथिलेश प्रियदर्शी की कहानी “ऐन एंदेर हूं मां नंजक़न” का पाठ कर रहा था। मिथिलेश मेरे/हमारे समय के उन चुनिन्दा अफसाना निगारों
में हैं जिनकी कहानियों में खुद को नोटिस कराने की अद्भुत क्षमता है। “ऐन एंदेर हूं मां नंजक़न” शीर्षक कुडुख...
‘यह बस यूं ही में जरूर है, लेकिन ‘बस यूं ही नहीं है.’ यह कहना ऐसा ही है जैसा उस दिन मनबिदका भैया बोले कि बात हंसने की जरूर है, लेकिन मजाक में लेने की नहीं है. हम जानते थे कि मनबिदका भैया ऐसी जटिल हिंदी तभी बोलते हैं, जब उन्हें कोई चीज बहुत बुरी लगी हो, उस समय पोस्ट होली खुमारी में थे और समझ रहे थे कि वह होली के मौके पर बजनेवाले ईल गीतों पर अपना क्षोभ प्रकट करेंगे और फिर हमें चाय पीने का ऑफर देंगे. लेकिन मनबिदका भैया हंस रहे थे और हंसते ही जा रहे थे. सिद्धार्थ ने पूछा, का भांग-ओंग खाये हैं क्या?...
जो होना चाहिए वह होता नहीं और कई बार उसे लगता है जो हो रहा है वह होना नहीं चाहिए. तब उसका मन कहता कि कितना अच्छा होता कि तू मशीन होती, तब तुम में भावनाएं नहीं होतीं, तुम सिर्फ उत्पादन का साधन होती, मेयरली अ प्रोडक्शन मीन्स. उसे सबसे ज्यादा गुस्सा तो कलमुंहे तर्क पर आता जो उसकी जिंदगी पर राज करता है, जिस पर उसे सबसे ज्यादा विश्वास है, जिसने उसकी जिंदगी को मथ कर मट्ठा कर दिया है और जिसका रायता वहां से यहां तक 25 सालों में फैला हुआ है, यह नहीं होता तो जिंदगी बेहद आसान होती. हां..ना..सही..गलत के झंझावात...
जानता हूं, यह ठीक समय नहीं है कि आप लोगों से कोई कड़वी बात की जाए. लेकिन, फिर भी यही मौका है कि मुझ जैसा खाकसार आपसे कुछ कह सके. आप हद दरजे के शरीफ होने के बाद भी देश, समाज, धर्म आदि के नाम पर बेहद आक्रामक लोग हैं. असहमति को आप हवा में उछाला गया कोई ऐसा पदार्थ मानते हैं जिसे बाद में आपकी सहमति वाली जमीन पर ही गिरना है. चूंकि इस समय आप नेक लोग, बेहद सदमे में हैं इसलिए मैं इस मौके का फायदा उठाना चाहता हूं. सबसे पहले तो मैं आप लोगों को बधाई देना चाहता हूं कि आपने तेजपाल के जुर्म की क्या खूब सजा दी....
कभी कभी लगता है तारीखों का कोई महत्व नहीं होता, अगर उसे दर्ज़ न किया जाय। सोचता हूँ हर तारीख को दर्ज़ करूँ, डायरी लिखूँ । क्या मैं शुरुआत कर चुका हूँ शायद! एक सामान्य से बुधवार को खास बनाने का प्रयास। डायरी लिखने पर लिखने के बारे में सोचते हुए मन में बार बार पुराने परिचित का ध्यान आ रहा है उस ने अभी अभी आर चेतन क्रांति की ताज़ा कविता पर सवाल उठाते हुए कहा की क्या यह साहित्य है, बड़ी कोफ्त होती है वह लड़का कॉलेज के दिनों में कविता करना चाहता था आज कल क्या कर रहा है पता नहीं ... क्या लेखन...