cant we study present situation like this ?

Posted by हारिल On Thursday, August 18, 2011 0 comments
From EPW Vol XLVI No.26 June 25, 2011 Fasts, Hunger and Hunger Strikes By: Anand Teltumbde How the State has responded to the fasts of Anna Hazare, Baba Ramdev and Medha Patkar and how the media has portrayed them are a study in contrasts and say something about our society. Anand Teltumbde (tanandraj@gmail.com) is a writer and civil rights activist with the Committee for the Protection of Democratic Rights, Mumbai. Once a government is committed to the principle of silencing the voice...

एनिवन कैन बी अ फेमिनिस्ट !

Posted by हारिल On Monday, March 7, 2011 0 comments
“फ्रांस की जो स्थिति 1949 में थी, पश्चिमी समाज उन दिनों जिस आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा था, वह शायद हमारा आज का भारतीय समाज है, उसका मध्यम वर्ग है, नगरों और महानगरों में बिखरी हुई स्त्रियाँ हैं, जो संक्रमन के दौर से गुज़र रहीं हैं”।(डॉ. प्रभा खेतान, स्त्री उपेक्षिता) आठ मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्कूलों में जिस तरह से लेख लिखना सिखाया जाता है यदि उस भाषा में लिखूँ तो इस दिन महिलाओं के उत्थान, उनकी...

गोधरा पर फैसला

Posted by हारिल On Friday, March 4, 2011 0 comments
1 मार्च को विशेष अदालत ने गोधरा कांड में दोषी करार दिये गए 31 आरोपियों को सज़ा सुना दी। 31 में से 11 को फांसी और 20 को उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई है। यह खबर पूरे देश को अखबारों और खबरिया चैनलों के माध्यम से पता चल चुकी है। फैसला एक विशेष अदालत ने दिया है इस लिए इस पर कोई ज़्यादा टिप्पणी नहीं कर सकता। लेकिन फिर भी 9 साल पुराने इस मामले के कुछ बिन्दुओं पर ध्यान देना ज़रूरी है वह भी तब जब ज़्यादातर अखबारों में यह खबर की भाषा कुछ ऐसी हो “वर्ष 2002 में...

नालंदा और विज्ञान की चाह

Posted by हारिल On Thursday, March 3, 2011 1 comments
यह लेख शनिवार 08 जनवरी 2011 को अँग्रेजी अखबार द हिन्दू में छपा था। इंटरनेट पर तफ़रीह करते हुए अभी अभी मैंने पढ़ा। अमर्त्य सेन अब किसी परिचय के मोहताज नहीं। इस लेख में भी उन्होने नालंदा विश्वविध्यालय के बहाने एक आदर्श विश्वविध्यालय के इतिहास और वर्तमान में उसमें उपस्थित संभावनाओं पर सटीक टिप्पणी की है। कहीं न कहीं यह लेख हमें सोचने को मजबूर करता है की हम क्या थे और क्या हो गए। फिलहाल लेख को सीधे द हिन्दू से उठा कर ‘हारिल’ पर चिपका रहा हूँ। अगर...

कविता के बहाने

Posted by हारिल On Wednesday, March 2, 2011 0 comments
कविता कैसे बनती है यह बात अभी तक समझ में नहीं आई पर एक बात जो कविता के संबंध में बहुत साफ तौर से मानता हूँ कि आप इसका इस्तेमाल चर्च में बैठे उस पादरी कि तरह कर सकते हैं जो आपकी गलतियों को सुनता है और ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह आपके गुनाह माफ कर दे। आपको पता नहीं होता कि ईश्वर ने गुनाह माफ किए या नहीं पर आप अपने आप को उस गुनाह से मुक्त पाते हैं। कविता भी एक तरह का स्वीकार्य है आपके प्रेम का, गुस्से का, भय का, और फिर उन सब से मुक्ति भी .......... साहस होने से साथ बनता है या साथ होने से...

कविताएँ

Posted by हारिल On Tuesday, March 30, 2010 6 comments
(1)लो लिख मारीमैंने एक और कविता हाँ,तुम्हारे ऊपर ....तुम जो वर्ग की श्रेणी में मध्यम आते होतुम न शोषक हो न शोषित ...फिर भी पता नहीं क्यों डरते हो थोड़े से अक्षरों से......उनकी अर्थवान एकता से ....खैर, जबकि तुमपहचान लिए गए होमेज के उस तरफ बैठे आदमी के एजेंट के रूप मेंतो तुमसे क्या कहूँ ...तब जबकितुम में से किसी ने अपने बच्चे के सवाल को डांट कर चुप करा दिया है .......कोई अपनी बीबी को अपने साहब के पास बेच आया है......कोई बहुत तत्परता से हमारी रिपोर्ट वहां दर्ज करा रहा है .....फिर भी अगर संभावना हो...

मीडिया का मोदी महोत्सव

Posted by हारिल On Tuesday, March 30, 2010 1 comments
नरेन्द्र मोदी से रविवार 29 मार्च को दो बैठकों में 9 घंटे पूछताछ हुई. उनसे मैराथन बातचित कर यह पता लगाने का प्रयास किया गया होगा कि 2002 के दंगों, खास तौर से उस घटना, जिसमें गुलबर्ग सोसायटी में रहने वाले सांसद सहित 62 लोगों को जिंदा जला दिया गया था , में सरकार की क्या भूमिका रही थी . आरोप है कि अगर सरकार और मुख्यमंत्री चाहते तो ऐसा होने से रोका जा सकता था. इस मामले में दायर याचिका में कहा गया है कि 'बार-बार फ़ोन करने पर भी पुलिस अधिकारीयों द्वारा ध्यान नहीं दिया गया. स्वयं मुख्यमंत्री नरेन्द्र...