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ऐसे हुआ हूल

Posted by हारिल On Monday, June 13, 2016 0 comments
गुंजेश  यदि मैं आपको अभी बता दूं कि आगे के पूरे लेख में आप एक किताब के बारे में पढ़ेंगे. एक ऐसी किताब जो 1857 की स्वतंत्रता संग्राम की पूर्व पीठिका का औपन्यासिक दस्तावेज होने का दावा करती है. स्वतंत्रता संग्राम की पूर्व पीठिका अर्थात ‘संताल हूल’. जिसमें पहली बार संतालों ने यह सवाल उठाया था कि यह जमीन ईश्वर की, हम ईश्वर के बेटे फिर बीच में यह सरकार कहां से आ गयी. ठीक है कि आप जानते हैं कि ‘यह आंदोलन 30 जून 1855 से सितंबर 1856 तक चला’...

“ऐन एंदेर हूं मां नंजक़न” को पढ़ते हुए...

Posted by हारिल On Friday, April 24, 2015 0 comments
कई बार, कई कहानियों को पढ़ते हुए इस (कु) पाठक के मन में यह प्रश्न उठता रहा है कि जिस तरह से हर कथा में कई उपकथाएँ होतीं हैं क्या उसी तरह से कई उपकथाओं को जोड़ देने से कोई (सार्थक; अगर लेखक का उसपर यकीन हो तो) कहानी बन सकती है? यह प्रश्न एक बार फिर मेरे सामने आया जब मैं मिथिलेश प्रियदर्शी की कहानी “ऐन एंदेर हूं मां नंजक़न” का पाठ कर रहा था। मिथिलेश मेरे/हमारे समय के उन चुनिन्दा अफसाना निगारों में हैं जिनकी कहानियों में खुद को नोटिस कराने की अद्भुत क्षमता है। “ऐन एंदेर हूं मां नंजक़न” शीर्षक कुडुख...