निराला
भ्रष्टाचार क्या सच में सबसे बड़ा मसला हैयह भेदता और बेधता है कभी अंदर तकरात की नींद उड़ायी है कभी इसनेकभी ले लिया है दिन और दिल का चैन वैसे ही जैसे कभी सवर्ण बिटिया का किसी दलित के बेटू सेया सवर्ण के बेटे का दलित बिटिया से शादी कर लेने के बादमचता है कोहरामहोता है वज्रपातटूट पड़ता है आसमानसिर्फ मां-बाप, भाई-बहन ही नहींफुआ, मौसी, नानी, काकी, मामी...सब नाक-मुंह फुला लेते हैंएक झटके में जनम और खून का रिश्ता तोड़ने लगते हैंसबसे छुपाते रहते हैं या कहते फिरते हैंनाश कर दिया, कहीं का नहीं छोड़ा...
From EPW
Vol XLVI No.26 June 25, 2011
Fasts, Hunger and Hunger Strikes
By: Anand Teltumbde
How the State has responded to the fasts of Anna Hazare, Baba Ramdev and Medha Patkar and how the media has portrayed them are a study in contrasts and say something about our society.
Anand Teltumbde (tanandraj@gmail.com) is a writer and civil rights activist with the Committee for the Protection of Democratic Rights, Mumbai.
Once a government is committed to the principle of silencing the voice...

“फ्रांस की जो स्थिति 1949 में थी, पश्चिमी समाज उन दिनों जिस आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा था, वह शायद हमारा आज का भारतीय समाज है, उसका मध्यम वर्ग है, नगरों और महानगरों में बिखरी हुई स्त्रियाँ हैं, जो संक्रमन के दौर से गुज़र रहीं हैं”।(डॉ. प्रभा खेतान, स्त्री उपेक्षिता) आठ मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्कूलों में जिस तरह से लेख लिखना सिखाया जाता है यदि उस भाषा में लिखूँ तो इस दिन महिलाओं के उत्थान, उनकी...

1 मार्च को विशेष अदालत ने गोधरा कांड में दोषी करार दिये गए 31 आरोपियों को सज़ा सुना दी। 31 में से 11 को फांसी और 20 को उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई है। यह खबर पूरे देश को अखबारों और खबरिया चैनलों के माध्यम से पता चल चुकी है। फैसला एक विशेष अदालत ने दिया है इस लिए इस पर कोई ज़्यादा टिप्पणी नहीं कर सकता। लेकिन फिर भी 9 साल पुराने इस मामले के कुछ बिन्दुओं पर ध्यान देना ज़रूरी है वह भी तब जब ज़्यादातर अखबारों में यह खबर की भाषा कुछ ऐसी हो “वर्ष 2002 में...

यह लेख शनिवार 08 जनवरी 2011 को अँग्रेजी अखबार द हिन्दू में छपा था। इंटरनेट पर तफ़रीह करते हुए अभी अभी मैंने पढ़ा। अमर्त्य सेन अब किसी परिचय के मोहताज नहीं। इस लेख में भी उन्होने नालंदा विश्वविध्यालय के बहाने एक आदर्श विश्वविध्यालय के इतिहास और वर्तमान में उसमें उपस्थित संभावनाओं पर सटीक टिप्पणी की है। कहीं न कहीं यह लेख हमें सोचने को मजबूर करता है की हम क्या थे और क्या हो गए। फिलहाल लेख को सीधे द हिन्दू से उठा कर ‘हारिल’ पर चिपका रहा हूँ। अगर...
कविता कैसे बनती है यह बात अभी तक समझ में नहीं आई पर एक बात जो कविता के संबंध में बहुत साफ तौर से मानता हूँ कि आप इसका इस्तेमाल चर्च में बैठे उस पादरी कि तरह कर सकते हैं जो आपकी गलतियों को सुनता है और ईश्वर से प्रार्थना करता है कि वह आपके गुनाह माफ कर दे। आपको पता नहीं होता कि ईश्वर ने गुनाह माफ किए या नहीं पर आप अपने आप को उस गुनाह से मुक्त पाते हैं। कविता भी एक तरह का स्वीकार्य है आपके प्रेम का, गुस्से का, भय का, और फिर उन सब से मुक्ति भी .......... साहस होने से साथ बनता है या साथ होने से...